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Tuesday, October 1, 2013

गज़ल

मजबूरियों ने मुझको कुछ इस तरहा से घेरा
गिरता है जो भी आँसू लेता है नाम तेरा
दिल पर मेरे लगा है अरमानों का बसेरा    
किसका करूँ यकीं है सारा जहाँ लुटेरा
किस्मत का बुझ गया है कुछ यूँ चिराग मेरा
आता नज़र है मुझको बस दूर तक अँधेरा
सारे जहाँ की मुझको कोई फिकर नहीं
सब कुछ है पास मेरे बस एक हमसफर नहीं
ए काश कोई कर दे गर ये इंतज़ाम मेरा
भूले कभी ना उसका एहसान दिल ये मेरा
तेरी जिंदगी में शायद आए वो दिन अज़ीम
पहुँचे बुलदियों पर एक दिन नसीब तेरा

इसरार अहमद 'अज़ीम'
बदरपुर, नई दिल्ली 

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सुमित प्रताप सिंह,
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