सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है।

Wednesday, October 14, 2015

व्यंग्य कविता : भेड़ों की चिंता




सुना है कल 
भेड़ों की हुई थी
बहुत बड़ी पंचायत
जिसमें दूर-दूर से
आयीं थीं भेड़ें
कुछ भेड़ें थीं डरीं-डरीं
और कुछ थीं सहमी-सहमी 
कुछ बड़ी दिलेर थीं
और कुछ थीं बिंदास बहुत 
काले-भूरे बाल थे कुछ के
और कुछ के थे सफ़ेद-सलेटी
किन्तु एक बात 
समान थी सब में
सब ही चिंता में थीं डूबीं
उनकी चिंता थी जायज
मनुष्य ने पहले तो 
कुत्ते से कुत्तापन चुराया
फिर छीन ली लोमड़ी से धूर्तता
भेड़िये से लिया कमीनापन
और झपटी सियार से मक्कारी
अब बेचारी भेड़ों से
उनकी भेड़चाल छीनने की 
मनुष्य कर रहा है कोशिश
बिल्ली की चाल को
कैट वाक कह ले लिया
इस पर नहीं है 
भेड़ों को कोई आपत्ति
किन्तु यदि मनुष्य 
चाहता है करना प्रयोग
उनकी भेड़ चाल का
तो करना पड़ेगा उसको 
इसका पूरा पेमेंट
क्योंकि इसका कॉपीराइट 
सिर्फ भेड़ों के पास ही
है सर्वाधिकार सुरक्षित।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
*कार्टून गूगल से साभार 

No comments:

Post a Comment

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!