लन्दन:वरिष्ठ कथाकार एवं कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा का कहना है कि हिन्दी भारत में अनुवाद की भाषा है। भारत की संसद एवं सरकारी महक़मों में सारा काम काज अंग्रेज़ी भाषा में किया जाता है और उस सारे काम का अनुवाद हिन्दी में करवा कर गोदामों को भरने के काम में लाया जाता है। हम आज यह प्रस्ताव पारित करते हैं कि भारतीय संसद में हिन्दी को प्रमुख भाषा का दर्जा मिले और हिन्दी भाषा में पूरी कार्यवाही का लेखा जोखा रखा जाए। यदि कुछ सांसदों को उसके अंग्रेज़ी अनुवाद की आवश्यक्ता हो तो उन्हें उपलब्ध करवा दिया जाए। अवसर था 15 जून 2015 को विश्व हिंदी साहित्य परिषद के तत्वावधान में, कथा यू के, के सहयोग से क्रॉयडन हिल्टन, लंदन में आयोजित एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं संस्कृति सम्मलेन
सम्मेलन का उद्घाटन भारतीय उच्चायोग के मन्त्री समन्वय श्री सुखदेव सिंह सिद्धु ने मुख्य अतिथि के तौर पर किया। उन्होंने इस प्रयास का स्वागत किया कि भारत से हिन्दी प्रेमी ब्रिटेन में कथा यू.के. के साथ मिल कर हिन्दी भाषा एवं साहित्य के विकास के लिये सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं।
अपने स्वागत भाषण में लेबर पार्टी की काउंसलर एवं वरिष्ठ कथाकार श्रीमती ज़किया ज़ुबैरी ने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से ब्रिटेन एवं भारत के हिन्दी प्रेमियों को आपस में बातचीत करने का अवसर मिलेगा। इस सत्र के अध्यक्ष थे श्री अमर सिंह राठौड़। इस सत्र में पुरवाई, आधुनिक साहित्य, प्रवासी संसार एवं उर्वशी जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं के अतिरिक्त बहुत सी पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का लोकार्पण किया गया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात भाषा और लिपि व हिन्दी – कारोबार एवं तकनीक की भाषा पर होने वाले दोनों सत्रों को मिला कर एक कर दिया गया। इस सत्र की अध्यक्षता ओसमानिया विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शीला मिश्रा ने की तो मुख्य अतिथि रहीं ब्रिटेन की वरिष्ठ कथाकार उषा राजे सक्सेना। मंच पर ब्रिटेन से डॉ. अरुणा अजितसरिया एवं शिखा वार्ष्णेय भी मौजूद थीं। वक्तव्य सैद्धान्तिक थे तो व्यवहारिक भी। इस सत्र में ब्रिटेन के साहित्यकारों का योगदान महत्वपूर्ण रहा। सत्र का संचालन भोपाल के कथाकार, संपादक एवं प्राध्यापक डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने किया।
कार्यक्रम का गरमागरम सत्र रहा प्रवासी साहित्य पर जिसके मुख्य अतिथि रहे प्रवासी संसार के संपादक राकेश पाण्डेय जबकि अध्यक्षता एवं संचालन किया कथाकार एवं पुरवाई के नये संपादक तेजेन्द्र शर्मा ने। इस सत्र में शैल अग्रवाल (बरमिंघम), जय वर्मा (नॉटिंघम) एवं महेन्द्र दवेसर (लन्दन) ने महत्वपूर्ण विचार रखे। आशिष कंधवे का कहना था कि वह किसी प्रवासी अप्रवासी को नहीं मानते। हिंदी में लिखने वाला हिंदी का लेखक है फिर वह कहीं भी हो. हिंदी हम सबकी है. भाषा भेदभाव नहीं करती। वहीं तेजेन्द्र शर्मा का कहना था कि विदेशों में लिख रहे साहित्यकार एक विचित्र किस्म की दुविधा का शिकार हैं। वे अपने आपको प्रवासी साहित्यकार मानना भी नहीं चाहते मगर विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में एक प्रवासी लेखक के तौर पर अपनी रचनाएं शामिल भी करवाना चाहते हैं। उन्होंने भारतवासियों को चेतावनी भी दी कि भारतवंशियों (यानि कि प्रवासियों) का लेखन तभी निरंतर चलता रह सकता है यदि भारत से आ रहे नये प्रवासी हिन्दी भाषा के प्रति स्नेहाभाव रखते होंगे। जिस तरह का कच्चा माल भारतवासी हमें सप्लाई करेंगे उसी कच्चे माल पर निर्भर होगा कि भारतवंशियों का लेखन क़ायम रह सकता है या नहीं।
तत्पश्चात सुश्री ममता अहार ने एकल नृत्य नाटिका मीराबाई प्रस्तुत की। जिसकी भरपूर सराहना की गयी। डॉ. ममता सिंह ने अपने चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई थी जबकि हिन्दी साहित्यकारों पर जारी की गई डाक टिकटों की भी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था।
कार्यक्रम का अन्तिम सत्र था कवि सम्मेलन एवं नृत्य नाटिका। कवि सम्मेलन का संचालन ग़ज़लकार सुशील ठाकुर ने किया। इस कवि सम्मेलन में भारत से श्री उदयवीर सिंह, श्री कुमेश कुमार जैन, आशिष कंधवे, सुषमा भण्डारी, डॉ. ममता सिंह, राकेश पाण्डेय, आभा चौधरी, रेणु पन्त, नीलम राठी, अलका मोहन आदि शामिल थे तो ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व सोहन राही, ज़किया ज़ुबैरी, उषा राजे सक्सेना, शैल अग्रवाल, उर्मिल भारद्वाज, इंदिरा आनन्द, शिखा वार्ष्णेय, अनुपमा कुमारज्योति एवं तेजेन्द्र शर्मा।
अन्त में प्रतिभागियों को काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी, श्री अमर सिंह राठौर एवं तेजेन्द्र शर्मा ने अलंकरण एवं सम्मानपत्र भेण्ट किये।
रिपोर्ट -अनुपमा कुमार ज्योति
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सुमित प्रताप सिंह,
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