सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है।

Sunday, August 24, 2014

लघु कथा : अंत

   ज राजू फिर से बहुत उदास था। स्कूल जाने का समय हो गया लेकिन वह घर के एकांत कमरे में ही बैठा रहा। माँ ने रसोई से आवाज लगायी, "बेटा राजू आज तूने नाश्ता भी नहीं किया। क्या बात है तबियत तो ठीक है?" 
फीकी सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए राजू बोला, "कुछ भी तो नहीं माँ। बस स्कूल निकल रहा हूँ।"
राजू धीरे-धीरे स्कूल की तरफ कदम बढ़ाने लगा। कदमों के साथ-साथ कुछ सवाल भी उसके मन में चल रहे थे कि आज तो फीस जमा कराने का दिन है। स्कूल में फीस न ले जाने पर आज फिर से हर महीने की तरह क्लास में खड़ा किया जायेगा और सभी स्टूडेंटस उस पर हँसेंगे। माँ को अगर बताता है तो माँ भी हर बार की तरह लाचार होकर सोचने लगेगी। फिर घर की कोई न कोई चीज बेचकर एक दो दिन में पैसा देने की बात कहेगी । राजू आज वैसे भी माँ को उदास नहीं करना चाह रहा था। 
दरअसल राजू के पिता बीते साल कुंभ के मेले में स्नान करने गए और तबसे आज तक उनका कोई आता-पता नहीं चला। कोई कहता है कि वो सन्यासी बन गए हैं तो कोई उनके प्रयाग के संगम में डूबकर मरने की बात करता है।  हालाँकि राजू और उसकी माँ को अभी भी उनके वापस लौटने की आस है लेकिन इंतज़ार करते-करते यह आस भी थक चुकी है।


इसी उधेड़बुन में खोये हुए समय कट गया और स्कूल का गेट आ गया । पाण्डे सर गेट पर ही खड़े थे।वो मुस्कुराते हुये बोले, "क्या हुआ राजू लेट कैसे हो गये? तुम तो सबसे पहले आते हो।"
राजू थोड़ा डरते हुए, "हाँ सर आज थोड़ा लेट हो गया।"
इतना कहकर सीधे क्लास में चला गया। आज इस बात का ताज्जुब था किसी ने भी फीस को नहीं टोका था।
कुछ ही देर में एक पड़ोस का लड़का भागता हुआ आता है और क्लास की खिड़की से चीखकर बोलता है, "राजू तेरे पापा घर वापस आ गये हैं।"
राजू सुनकर कुछ पल के लिए मूर्ति बना खड़ा रहता है। उसे लगता कि कहीं हर बार की तरह इस बार भी वह सपना तो नहीं देख रहा।
लड़का फिर चीखता है, "राजू तेरे पापा आ गये।“
राजू उठकर भागता है पीछे से कोई आवाज़ आती है, "राजू अपना बैग तो लेते जाओ।"
लेकिन राजू को न तो कुछ सुनाई दे रहा था और न ही दिखाई।
घर के बाहर एकत्र भीड़ को चीरता हुआ घर में घुसता है सामने राजू पापा को बैठा देख बन से लिपट जाता है और तेज-तेज रोने लगता है।
राजू और उसके पापा दोनों खूब रोते हैं माँ बराबर में खड़ी न जाने कबसे रो रही है।
धीरे-धीरे सब शान्त हो जाता है। पीछे से स्कूल के सर भी आ जाते हैं।
“बेटा राजू अब मत रोना” सर राजू के सिर पे हाथ रखते हुए बोले।
सर ने पूछा, "राजू ये बताओ अब कैसा लग रहा है और पहले कैसा लगता था?
आँखों में आँसू और होठों पे मुस्कान लिए राजू कहता है "सर अभी जो खुशी मिली वो मैं बता नहीं पाऊँगा और जो पहले का दुख है वो आप समझ नहीं पायेंगे इसको वह समझ सकता है जिसने पिता को खोया हो।“
यह सुनकर सभी की आँखों में आँसू आ जाते हैं लेकिन ये आँसू खुशी के आँसू थे जो राजू और उसके परिवार के सभी दुखों को बहाकर ले जा रहे थे। दूसरे शब्दों में यह उसके परिवार के दुखों का सुखद अंत था।

लेखक : अमित शुक्ला
बरेली, उत्तर प्रदेश 
संपादन : सुमित प्रताप सिंह  

No comments:

Post a Comment

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!