नव युवा हे चिर युवा तुम
उठो नव युग का निर्माण करो ।
जड़ अचेतन हो चुका जग,
तुम नव चेतन विस्तार करो ।
पथ भ्रष्ट औ' लक्ष्य विहीन होकर
न स्वयौवन का संहार करो ।
उठो ! नव युग का निर्माण करो ।
दीन-हीन संस्कार क्षीण अब
तुम संस्कारित युग का संचार करो ।
अभिशप्त हो चला है अब भारत !!
उठो ! नव भारत निर्माण करो ।
नव युवा हे चिर युवा ।
गर्जन तर्जन ढोंगियों का
कर रहा मानव मन क्रंदन ।
सिंहों सा गर्जन कर अब हुंकार भरो
उठो सत्य प्रति मूर्ति नरेंद्र बनो ।
नव युवा हे चिर युवा ।
गूँजे हुंकार कि काँप उठे दुष्प्रहरी
न मृगछौना बन शावक केसरी ।
चहुँ ओर गुंजन हो
ऐसी सिंह दहाड़ करो ।
नव युवा हे चिर युवा ।
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सुमित प्रताप सिंह,
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