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Monday, October 7, 2013

कुछ तो दे

कौन जीता हैं तेरे लबों 
की मुस्कराहट पर...
हम तो जीते हैं तेरे लबों
की उदासी पर...
कौन पीता है तेरे इश्क
के पैमानों को....
हम तो पीते हैं तेरे अश्कों
के पैमानों को....
ना दे खुशियाँ अपनी
नहीं चाहिए प्यार,
इश्क, मोहब्बत हमें...
पर कुछ तो दे....
दे दे गम अपने....
सब ना दे, कुछ कम दे....

पर दे दे गम अपने.

रविश 'रवि'
फरीदाबाद


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और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!