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Thursday, May 30, 2013

जीवन जीने के लिए ज़ज्बा है ज़रूरी

    रीक्षा भवन में बैठा प्रश्न पत्र मिलने की तैयारी कर रहा था, तो देखा पहली पंक्ति की अगली सीट पर एक हट्टा-कट्टा नौजवान बैठा हुआ था। उसकी बाजुओं और ऊपरी शरीर को देखकर साफ़ पता चल रहा था, कि वह नियमित रूप से कसरत करता होगा। परीक्षक भी उसके शारीरिक सौष्ठव देखकर से काफी प्रभावित हुआ। उसने उस युवक से पूछा, कि क्या वह पहलवानी करता है. उस युवक ने बताया, कि उसे कसरत करने का शौक है और वह नियम से जिम में कसरत करता है। मैं उन दोनों की बातचीत ध्यान से सुन रहा था। उस युवक के डील-डौल से मैं भी प्रभावित हुआ। परीक्षा आरंभ हुई और हम सभी अपने-अपने प्रश्न पत्र हल करने में मस्त हो गए। जब परीक्षा समाप्त हुई, तो सभी छात्र-छात्राएँ उठकर अपनी राह को चलने लगे, तो उस युवक ने परीक्षक को कुछ इशारा किया। परीक्षक को कुछ समझ में न आया। तभी बाहर से चपरासी आया और उसने बताया, कि वह उनसे अपनी बैसाखियाँ माँग रहा है। परीक्षक और मैं उस युवक के परीक्षा भवन में पहुँचने के बाद में आए थे, इसलिए उन परीक्षा भवन में रखी बैसाखियों के मालिक के बारे में ज्ञान न हो सका था। चपरासी ने उसे उसकी बैसाखियाँ लाकर दीं और वह मुस्कुराते हुए बैसाखियों के सहारे परीक्षा भवन से बाहर की ओर चल पड़ा। परीक्षक और मैं हैरान हो उस युवक को जाते हुए देखते रहे। उस युवक को देखकर ऐसा लगा कि जीने के लिए ज़ज्बे का होना बहुत ज़रूरी है। छोटी-मोटी असफलताओं से निराश हो जाने वाले हम इंसानों को ऐसे लोगों से कुछ सीख लेनी चाहिए। जीवन तो सभी जीते हैं, लेकिन जो इस जीवन को एक ज़ज्बे के साथ जीता है वह वाकई में जीवन को जीता है।  


सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली 

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!