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Monday, May 6, 2013

कविता: गरीब की किस्मत


एक गरीब का
पूरा परिवार
करता है
दिन-रात
मेहनत-मज़दूरी 
करनी पड़ती है
कमर तोड़ मेहनत
कोई बेचता है फूल-माल
तो कोई घरों में 
करता है चौका-बर्तन
और कोई रात को 
जागकर करता है पहरेदारी
हो पाता 
तब कहीं जाकर 
दो जून की रोटी का जुगाड़
फिर भी 
होना पड़ता है 
दूसरों की उतरन 
में ही संतुष्ट 
उनके होते हैं तीज-त्यौहार भी
रंगहीन व फीके-फीके।

रचनाकार: श्रीमति शशि श्रीवास्तव 
संपादिका, हम साथ-साथ पत्रिका, दिल्ली 

1 comment:

  1. ये ही क्रूरच्रक नियति है

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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