कविता: बेटियाँ भी जरूरी हैं
बिना बेटी के जीवन में सभी खुशियाँ अधूरी हैं
बहारें घर में लाने को बेटियाँ भी ज़रूरी हैं।
पिता और पुत्री का अनोखा एक रिश्ता है
निभातीं सारे रिश्तों को ये बनकर के फ़रिश्ता हैं
लुटा दो सब दौलत इन पर फिर भी मोल सस्ता है
बेटियों के बीन दुनिया की हर दौलत अधूरी है।
पिता जब देर से आते रात तक जागती रहती
रजाई ओढ़ सर्दी में ये चौखट ताकती रहती
मैं पापाजी की बेटी हूँ ये माँ से रूठकर कहती
रोकती-टोकती जब माँ, पिता देते मंज़ूरी है।
विलायत भजकर बेटों को तुम अफसर बनाओगे
देखोगे ख्वाब शादी के बड़े सपने सजाओगे
गर्भ में मारकर बेटी बहु फिर कहाँ से लाओगे
कोख में ही मिटाने की बताओ क्या मजबूरी है।
थी अवतार ममता की मदर टेरेसा सी बेटी
वो भारत रत्न कहलाई इंदिरा गांधी सी बेटी
विलक्षण प्रतिभा रखती है ये प्रतिभा पाटिल सी बेटी
किरण बेदी सी बेटी को बाहर लाना ज़रूरी है।
लक्ष्मीबाई सी बेटी ज़रा अरमानों से पालो
गर्भ में सोई सीता को जन्म से पहले मत मारो
तुम्हें सौगंध जननी की बनो न दानव हत्यारो
लगेगा पाप अति भारी नरक जाना ज़रूरी है।
धन्य कोख उस माँ जिसने बेटी को पाला है
कली गुलशन की है बेटी फूल की प्यारी माला है
अमावस के अँधेरे में पूर्णिमा का उजाला
बेटियों को बचाने का अब संकल्प ज़रूरी है।
रचनाकार: सुश्री पूर्णिमा अग्रवाल
बढ़िया ...
ReplyDelete