प्रीत तुम्हारी अक्षत चन्दन , है मनभावन नेह हमारा .
फिर आना एक बार दोबारा --------------------------.
पहली बार मिले थे जब तुम , मन उपवन में फूल खिले थे .
झंझावत में सहज सुखानी , स्मृति को आधार मिले थे .
बना रहा स्वप्निल आकर्षण , दिल ने लाखों बार पुकारा .
फिर आना एक बार दुबारा -----------------------------.
घर महकाया ऐसे तुमने , जैसे खिली रात की रानी .
तुमसे जो स्पर्श कर चुकी , मिटटी भी बन गई निशानी .
झुकी दृष्टि का मौन समर्पण , अंतर्मन का बना सहारा .
फिर आना एक बार दोबारा --------------------------.
एक रात देखा था तुम कुछ , दीप्ति बाँध लायी आँचल में .
जब यह तन्द्रा भंग हुई तो , चाँद झांकता था बादल में .
कैसा ये सुमधुर परिवर्तन , नित्य तुम्हारा रूप निहारा.
फिर आना एक बार दोबारा --------------------------.
संयम अब कमजोर पड़ रहा , जीवन को आधार चाहिए .
रूंठ गए क्यों हमसे प्रियतम , फिर से पहला प्यार चाहिए .
सूना मधुर दृष्टि का दर्पण , जबसे तुम कर गए इशारा .
फिर आना एक बार दोबारा ----------------------------.
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डॉ. कृष्ण कान्त 'मधुर'
डॉ. कृष्ण कान्त 'मधुर' जी स्वागत है आपका...
ReplyDeleteसुन्दर कविता हेतु शुभकामनाएँ स्वीकारें...
धन्यवाद सुमितजी गीत भावनात्मक अभिव्यक्ति की कोमल विधा है .
Deleteलेखन तो कठिन है किन्तु आनंद पूरा मिलता है . छंद -प्रबंध , अलंकार
निरूपण , शब्द व्यवस्था आदि सब मिला कर प्रयास किया है . आपको सुहाया
तो आत्मा प्रसन्न हुई.
भावों को अभिनव परवाज़ देता गीत .
ReplyDeleteधन्यवाद् वीरू भाई , मित्रों का स्नेह हमारे भावों की पूँजी है बनाये रखियेगा.
Deleteबहुत सुंदर.............
ReplyDeleteअनु
आभार अनु जी , मासूम सी संवेदना है गीत लेखन आपने सुंदर कहा तो हौसला मिला हे.
Deleteइस कोटि की रचनाएं भी कभी कभी ही जन्म लेती हैं... सहेज कर रखियेगा, बड़ी सुंदर और मनभावन रचना है।
ReplyDeleteपी के शर्मा जी , आपने सहज शब्दों में मेरे गीत की गुणवत्ता को सराहा है , मैं आभारी हूँ आप जैसी चेतना शक्ति भी तो चाहिए काव्य की सच्ची आख्या के लिए .
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